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अनुपम स्मृति 2022

कहते हैं कि शब्द ब्रह्म होते हैं ; कभी मरते नहीं. स्वर्गीय श्री अनुपम मिश्र जी को हम भूल भी जाएं, किन्तु उनके लिखे शब्द और उनके जिए जीवन किसी न किसी को अवश्य याद रहेंगे; हरदम… अनुपम पुण्य तिथि (19 नवम्बर) और अनुपम जयंती ( २२ दिसम्बर) की तरह…. उनके व्याख्यान उठ खड़े होंगे चेताते हुए कि पानी का अकाल बाद में आता है, उससे पहले आता है हमारे दिल और दिमाग में भयानक सूखा.. विचार और संवेदनाओं का अकाल; किसी खरे तालाब सा याद दिलाएंगे कि सदियों के अनुभव पर परखे ज्ञान में मौजूद हैं आधुनिक चुनौतियों के समाधान के सूत्र; सबसे लम्बी रात के सुपने में मौजूद हैं पीछे रहकर आगे जाने का सूत्र .

श्री अनुपम मिश्र स्मृति साहित्य – 2019

सबसे लम्बी रात का सुपना नया देह अनुपम बन उजाला कर गया। रम गया, रचता गया रमते-रमते रच गया वह कंडीलों को दूर ठिठकी दृष्टि थी जोे पता उसका लिख गया।

श्री अनुपम मिश्र स्मृति साहित्य (2)- 2018

अनुपम जी होते तो शायद कहते, ''अपन इस सवाल की बहस में क्यों पड़ें ? चतर सिंह, लक्षमण सिंह और राजेन्द्र के साथ मिलकर किसी समाज ने किया न। अपन भी करें। अपन करते रहेंगे तो एक दिन बाकी समाज भी पाइप की तरफ ताकना बंद कर देगा।''

श्री अनुपम मिश्र स्मृति साहित्य – 2018

विषमताओं में समता का मार्ग तलाशते वक्त सद्भाव बनाये रखना, श्री अनुपम मिश्र का एक विशेष गुण था। संभवतः इसीलिए द्वितीय अनुपम स्मृति में हरित स्वराज संवाद का विषय रखा गया था - विषमताओं के आइने में समता का विमर्श।

श्री अनुपम मिश्र स्मृति साहित्य – 2017

रैणी गांव से शुरु संघर्ष की कथा आप सब जानते हैं।....शिविर लगा, तो अनुपम भी उसमें आये। वन जागे, वनवासी जागे। अलकनंदा में बाढ़ नहीं आने देना चाहते हैं। शिविर में नौजवानों को ऐसे स्पष्ट संदेश देने की कोशिश की गई। एक ओर सत्याग्रह चला, तो दूसरी ओर पहाड़ों को हरा-भरा करने का काम किया। बोलने का हक़ मुख्य रूप से महिलाओं को दिया.. क्योंकि पहाड़ में महिलाएं ही मुख्य काम देखती हैं; घर-बाहर सब जगह। अनुपम जी अपने लिए वह काम चुनते थे, जो सबसे कठिन हो। यूं बड़े, दीवार बनाते थे और बच्चे, पेड़ लगाते थे।''

श्री अनुपम मिश्र स्मृति साहित्य – 2016

सिद्धराज जी भाईसाहब ( प्रख्यात गांधीवादी नेता ) के जाने के बाद एक अनुपम ही तो थे, जो मुझे टोकते थे। काम से रोकते नहीं थे, लेकिन टोकते जरूर थे। कहते थे - तुम यह करो। यह मत करो। अब मेरा कुर्ता पकड़कर कौन खींचेगा ? कौन टोकेगा ?

पर्यावरण दिवस – 2023 : जो नहीं रहे, उनके नाम

निवेदक: पानी पोस्ट टीम 13 जून, 2011 से 04 जून, 2023 – मात्र 12 वर्ष के इस छोटे से इस अंतराल में हमने खासकर नदी-पानी की चिंता के ज़रिए इंसानी सभ्यता को संरक्षित करने की कोशिश करने वाली कई शख्सियतों को खो दिया। पर्यावरण दिवस – 2023 उन्ही की स्मृति और संकल्प के नाम। 13 […]

विश्व जल दिवस पर भारतीय जलगान

उमड़ता तू सिकुड़ता तू, तपता तू ही शीत बरखा, हवा का रुख बदलता तू, खुद का करके तू शोषण, नीर में मधु है तू भरता। पर प्यास में हर सांस में मिठास की खातिर, सागर रे, तू खारे रहना..