बाल कविता : एक पहेली राही मतवाले

अरुण तिवारी

अजब-ग़ज़ब सी शक्लें बनाते,
उमड़-घुमड़ के नाच दिखाते,
जाने कौन देस से आते,
आसमान है इनकी छतरी,
धरती इनका आंगन जैसे,
जितने भूरे उतने काले, पर हैं मीठे पानी वाले,
मैं पूछूं तुम नाम बताओ, ये हैं राही मतवाले।
(बोलो कौन ?)

रेती से कुछ बिदके-बिदके,
पवन तेज़ तो छिटके-भटके,
गर्म-सर्द में अटके-सटके,
चमक दिखाते, कभी डराते,
हरे-भरे से मेल बढ़ाते,
जितने भूरे, उतने काले, पर हैं मीठे पानी वाले,
मैं पूछूं, तुम नाम बताओ, ये हैं राही मतवाले।

(बोलो कौन ?)

चौमासे में धूम मचाते,
कार्तिक-गहन में थक जाते,
पूस-माघ में फिर छा जाते,
फागुन-चैत में उजरे-उजरे,
सागर तट पर आते-जाते,
जितने भूरे उतने काले, पर हैं मीठे पानी वाले,
मैं पूछूं तुम नाम बताओ, ये हैं राही मतवाले।

(बोलो कौन ?)

मेढक, मोर, पपीहा, चातक,
कवि, किसानी, मछली, पोखर,
सब मिलकर खूब हरष रहे हैं,
घनन-घनन सुर बरस रहे हैं,
तन-मन-धन को सरस रहे हैं,
जितने भूरे उतने काले, पर हैं मीठे पानी वाले,
मैं पूछूं तुम नाम बताओ, ये हैं राही मतवाले।

(बोलो कौन ?)

न जानें ये जाति-मजहब,
काले-गोरे का भेद न माने,
हर प्राणी से रिश्ता इनका,
हर घर इनका अपना घर है,
सबकी हैं ये प्यास बुझाते
जितने भूरे, उतने काले, पर हैं मीठे पानी वाले,
मैं पूछूं, तुम नाम बताओ, ये हैं राही मतवाले।

(बोलो कौन ?)

जीवन देने को जन्मे हैं,
जीवन देकर ये मिट जाते,
जिस सागर से ये उठते हैं,
उस सागर में लौट के जाते,
इसीलिए सब इनको चाहते,
जितने भूरे, उतने काले, पर हैं मीठे पानी वाले,
मैं पूछूं, तुम नाम बताओ, ये हैं राही मतवाले।

(बोलो कौन ?)

बादल, मेघा…और कौन !! 

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अरुण तिवारी

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