पानी के आइने में न्यू इंडिया – दो
यह बांदा का किसान है, नये भारत का निशान है
रचनाकार : अरुण तिवारी
भाषणों में अपने वे
पानी को प्राण और
नदियों को प्राणरेखा बताते हैं,
पर सत्ता हाथ आते ही
सबसे पहले बांध की ऊंचाई बढ़ाते हैं।
नदी मरे या जीये,
उसकी हर बूंद खींचने को
असल विकास ठहराते हैं।
यह न्यू इंडिया है….
हर प्यासे को नदी जोड़ की
मृगमरीचिका दिखाते हैं।
शुद्ध पानी के नाम पर
पानी का बाज़ार सजाते हैं।
सूखा हो या बाढ़,
उन्हे सिर्फ राहत के बजट सुहाते हैं।
सिद्धि कुछ और करते है,
संकल्प कुछ और दिखलाते हैं।
यह न्यू इंडिया है..
बीमारी बनी रहे और खर्च बढ़ता रहे,
इस हुनर के वे डॉक्टर निराले हैं।
कारण उनकी इन्द्रियों पर लगे हुए
कॉरपोरेट ताले हैं।
जनता ने भी जैसे अपने मुंह सी डाले हैं।
इसी कारण जो मरता था मार्च में,
अब अक्तूबर में मरता है।
यह बांदा का किसान है,
नये भारत का निशान है।
यह न्यू इण्डिया है…
2 thoughts on “पानी के आइने में न्यू इंडिया – दो”
हर लाइन में आपकी,
दिल के छाले फूट रहे हैं ,
यहाँ जबर के आगे सच्चे टूट रहे हैं,
शुक्रिया