नदिया में मैं गंगा की धार बंधु


अरुण तिवारी

नदिया में मैं गंगा की धार बंधु,
देह कालिया का हूं मैं मर्दनहार बंधु।
लेना-देना मुझसे बस प्यार बंधु,
ओ बंधु रे…. ओ मेरे यार बंधु।।

ऋषिकेश में शिवा और मैं द्वारों में हरिद्वार,
प्रयागों में त्रिवेणी और मैदानों में बिहार।
भगीरथ सा तप हो लेता मैं अवतार बंधु,
मैं हूं क्षार सागर पार है विस्तार बंधु।
नदिया में मैं गंगा की धार बंधु,
ओ बंधु रे… ओ मेरे यार बंधु।


परबत से उतऊं या भूधर से फुटूं मैं,
जंगल में टहलूं या नगर-गांव दौडूं मैं।
मेघों से गोपिन से सब से तुम कहना बंधु
सागर है मेरा अंतिम प्यार बंधु।
नदिया में मैं गंगा की धार बंधु,
ओ बंधु रे… ओ मेरे यार बंधु।

अविरल ही बहने दो, निर्मल ही रहने दो।
जोड़ो मत नदियों को, तरुवर को जीने दो।
प्रभु बांधने चला दुर्योधन, क्या तू चाहे रार बंधु,
बिन नैया उतारूं मैं उस पार बंधु।
नदिया में मैं गंगा की धार बंधु,
ओ बंधु रे… ओ मेरे यार बंधु।

लहरों पर झूला तू, तीरों पर खेला तू,
रोटी की खुशबू में, रोली में, डोली में,
देखा है तूने मेरा सिर्फ प्यार बंधु,
अब न चेता तो कर दूंगा आरम-पार बंधु।
नदिया में मैं गंगा की धार बंधु,
ओ बंधु रे… ओ मेरे यार बंधु।

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अरुण तिवारी

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स्वराज मीडिया से साभार
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