हिंदी वाटर पोर्टल पर अरुण तिवारी के लेख
आदरणीय पाठक,
नमस्ते.
मेरठ के एक जल सम्मेलन में हम मिले. यह श्रीमान सिराज केसर से मेरी पहली मुलाकात थी. हम एक ही बस में दिल्ली वापस लौटे; मूंगफलियां खाते.. पानी से लेकर पानी में लगे व्यक्तियों , संगठनों आदि पर खुलकर चर्चा करते; और इस पहली ही मुलाकात में उन्होंने हिंदी वाटर पोर्टल के लिए लिखने का प्रस्ताव मेरे सामने रख दिया.
वह हिंदी वाटर पोर्टल के कर्ता-धर्ता थे. मैंने उनमें पोर्टल के लिए बेहतरीन सामग्री जुटाने की एक धुन देखी. मेहनताना मामूली था, किन्तु लेखों का कॉपीराइट पोर्टल का होगा; ऐसी कोई शर्त न थी; प्रकाशन के कुछ दिन बाद मैं उनका अन्यत्र उपयोग करने के लिए स्वतंत्र था. अतः मैंने स्वीकृति दे दी.
यह वर्ष – 2011 की बात है और कुछ ही दिन बाद मैने हिंदी वाटर पोर्टल के लिए अपना पहला लेख प्रेषित कर दिया – मनरेगा के सामाजिक प्रभाव .
यह पहला लेख 15 अक्तूबर, 2011 को प्रकाशित हुआ. केसर जी ने इसका शुक्रिया अदा किया. यह यात्रा वर्ष – 2020 तक सतत चली. पलट कर देखता हूँ तो सोचता हूँ कि शक्रगुज़ार तो मुझे होना चाहिए.
मैं शुक्रगुजार हूँ कि केसर जी और उनकी टीम ने मुझसे सतत लिखवाया; जब भी वाटर पोर्टल के दफ्तर जाना हुआ, हमेशा बड़ी आत्मीयता से मिले.. कितनी ही तपती दोपहरी हो, चाय के साथ बाहर से लाकर कुछ ताज़ा खिलाते थे और इस बीच पोर्टल की बेहतरी को लेकर चर्चा करते थे.
सिर्फ केसर जी नहीं, उनकी तत्कालीन टीम के हर सदस्य में मैने इस अपनेपन…इस जिज्ञासा को अनुभव किया; बहन मीनाक्षी, भाई रमेश कुमार और अमरनाथ जी.
हिंदी वाटर पोर्टल पर प्रकाशित मेरे लेख, रिपोतार्ज़ और कविताएं मेरे लिए आज बड़ी पूँजी हैं; ये रचनाएँ एक तरह से एक दशक के पानी के सामायिक प्रकरणों से सम्बन्धित सदर्भ सामग्री भी हैं. कभी-कभी सोचता हूँ कि इनमें से चयनित लेखों को पुस्तकाकार दिया जाए. हर वर्ष समसामयिक जानकारी आधारित पानी वार्षिकी प्रकाशित करने का सुझाव भी मैने केसर जी के समक्ष रखा था.
फिलहाल, हिंदी वाटर पोर्टल पर प्रकाशित मेरी समस्त रचनाओं के लिंक आपसे साझा करना ज़्यादा सहज और सुलभ लगा. सो, साझा कर रहा हूँ. इन लेखों का किसी भी रूप में सदुपयोग मुझे ख़ुशी प्रदान करेगा.
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