नदिया निर्मल तब रहे…

निवेदक -अरुण तिवारी

निकसत पानी निर्मला, सोखत भू भंडारण बढ़ जाय
नदिया निर्मल तब रहे, जब अविरल बहती जाय।।

नाला, नदी और नहर हैं, भिन्न-भिन्न सब धार।
नार मा करे अयन जो, सो नारायण अवतार।।

मल मिले जो गाद से, सीमेंट सख्त हो जाय।
मल निकारो नार से, नदी गाद बहन दो भाय।।

चाहे कितना शोधो विष को, अमृत न बन पाय
जल नदी-नाला अलगै रहें, निर्मल यही उपाय।।

नहर-बांध से जल बचे, तब तो दिल्ली आय।
नदी भूमि है नदिया खातिर, उसे न कोई हथियाय।।

कंकर-कंकर में शंकर बसे, सालिगराम सहकार।
माछ-कास से यार हों तो करैं बहुत उपकार।।

रेत सोख्ता चाहिए, करबद्ध करौ उपाय।
वेग-ढाल नदी प्राण हैं, सुन लो यार मन लाय।।

नदिया आज़ादी चहे, मत बांधो तट मझधार
जब भूमि जल भरपेट हो, नदी बने बड़वार।।

नदी दर्पण है नगर का, सभ्य-असभ्य समझाय
सूखी कचरा नदी गर तो हम गंदे बेपानी समुदाय।।

नदी संजोओ मात सम, सेवा करो मन लाय
मत मेल करो तुम मैल का, हरित करो जग भाय।।

सादा सुन्दर चाहिए, भोग विलास से दूर
जीवन नदिया सा बहे, उल्लास रहे भरपूर।।

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