सुनो-सुनो ऐ दिल्ली वालो…
निवेदक – अरुण तिवारी
सुनो-सुनो ऐ दिल्ली वालो,
तुम्हे कसम है यमुना जी की,
अमृत में तुम विष मत डालो
अपने नाले खुद संभालो।
घर-घर टॉयलेट टैंक बना लो,
काम्प्लेक्स परिसर में त्रिकुण्ड बना लो।
सीवेज पाइप. उद्योग जहां प्यारे,
कॉलोनी कॉमन शोध संयंत्र लगा लो।
न रोका पॉली, परनाले औ कचरा. पीढ़ी को विष दे जाओगे,
जीते-जी तुम मर जाओगे,
छठ मनाने कहां जाओगे।
सुनो-सुनो ऐ दिल्ली वालो,
तुम्हें कसम है यमुना जी की…
है पानी परजीवी दिल्ली,
भोग नहीं, सदुपयोग करो तुम, कम जरुरत, कम निकालो,
लीकेज रोको, कलंक मिटा लो।
सिर पर बरसे अमृत जल है,
पार्क, झील में उसे संजो लो। खेत तलाई, पार्क सिंचाई,
शोधित जल से काम चला लो। कचरा खाते, जल जीवन को स्वच्छ बनाते,
ऐसे जीवों को जल में पालो।
नदी किनारे घास कास हो, जामुन, बरगद, पाकड़, नीम, कदम्ब,
दूर सजी स्वच्छ-सुंदरा पंचवटी हो।
हर रस्ते पे पौध लगे हों,
घर-आंगन में फूल खिले हों,
राजधानी की हवा बचा लो।
सुनो-सुनो ऐ दिल्ली वालो,
तुम्हे कसम है यमुना जी की…
जब यमुन बीच हों मछली-मगरा,
तब लहर उठे मन को भा जाय,
गौ-कान्हा कालिंदी मन भाये,
कूल-कूल कृष्णमय हो जाय।
घाट-घाट पे ठाठ बिछाकर
बैठे पंडा नदिया बांचैं,
न भूले रैदास कठौती,
वेद पढ़ें. औ नदी बचाये।
गुरुवाणी गूंजे अजान भी,
जैन, पारसी, बौद्ध, बहाई
आओ सब मिलकर करो साधना,
दिल्ली दरिया को पाक बना लो।
सुनो-सुनो ऐ दिल्ली वालो,
तुम्हे कसम है यमुना जी की…
*****