पानी के आइने में न्यू इंडिया – चार
रहें कैसे नदिया जी से पूछती कुछ मछलियां।
यह न्यू इंडिया है…
रचनाकार : अरुण तिवारी
कहते हैं, इन दिनों
धरती बेहद उदास है।
इसके रंजो-ग़म के कारण
कुछ ख़ास हैं।
कहते हैं, धरती को बुखार है;
फेफङे बीमार हैं।
कहीं काली, कहीं लाल, पीली
तो कहीं भूरी पङ गईं हैं
नीली धमनियां।।
यह न्यू इंडिया है…
कहीं चटके…
कहीं गादों से भरे हैं
आब के कटोरे।
कुंए हो गये अंधे
बोतल हो गया पानी
कोई बताये
लहर कहां से आये ?
धरती कब तक रहे प्यासी ??
कभी थी मां मेरी वो
बना दी मैने ही दासी।।
यह न्यू इंडिया है…
कुतर दी चूनङ हरी
जो थी दवा,
धुंआ बन गई वो
जिसे कहते थे
कभी हम-तुम हवा।
डाल अपनी काटकर
जन्म लेने से पहले ही
मासूमों को दे रहे
हम मिल सजा।।
यह न्यू इंडिया है…
सांस पर गहरा गया
संकट आसन्न
उठ रहे हैं रोज
प्रश्न के ऊपर भी प्रश्न
तो क्यों न उठे
दिवस जल पर उंगलियां
रहें कैसे नदिया जी से
पूछती कुछ मछलियां।।
यह न्यू इंडिया है…