पानी के आइने में न्यू इंडिया – पांच

समय बेढंगा, मनुज अनाड़ी, मार रहा खुद पैर कुल्हाड़ी।

रचनाकार: अरुण तिवारी

हाय, समय यह कैसा आया
मोल बिका कुदरत का पानी।
विज्ञान चन्द्रमा पर जा पहुंचा,
धरा पर प्यासे पशु-नर-नारी।
समय बेढंगा, मनुज अनाड़ी,
मार रहा खुद पैर कुल्हाड़ी।
यह न्यू इंडिया है…

तेरे-मेरे में बंध टूटते,
खींच धरा की सांस लूटते।
पेटभरों की प्यास बढ़ गई,
परजीवी सब नगर हो गए,
मरुधर में है बाढ़ का मंज़र,
बाढ़ जहां वे भी बेपानी।
यह न्यू इंडिया है…

गर संजो सका न बारिश की बूंदे,
रुक जाएगी जीवन नाड़ी,
रीत गए गर कुएं-पोखर,
सिकुड़ गईं गर नदियां सारी,
नहीं गर्भिणी होगी धरती,
बांझ मरेगी महल अटारी।
यह न्यू इंडिया है…

लेखक सम्पर्क : 986879379
4 thoughts on “पानी के आइने में न्यू इंडिया – पांच”
  1. Besak duniya samay ke sath badal rahi hai aur badalni bhi chahiye lekin agr ham sab thoda sa bhi jagruk bankar paryavaran ko dhyan me rakhte hue apne kaam ko jari rakhe to jindagi kaphi khushal beetegi
    Aapki kavita bahut sundar tareeke se prastut ki gai hai mai aapse bahut prerit hua hu
    Aapke vachan maine bahut achche se sune the sangam kinare magh mele me pramod sir ke sath allahabad me 😊🙏🙏

  2. जल जागरूकता को लेकर आप का प्रयास सराहनीय है, हम सभी देशवाशियों को भी इस बारे जागरूक होना होगा तभी भविष्य सुरक्षित होगाl

  3. सुंदर रचना, सहज और सरल प्रवाह के साथ।
    आपका संपर्क सूत्र अपडेट करें।
    मुझे आपसे बात करने की इच्छा है।
    9838434263

Leave a Comment