भैया दूज : यमुना के कैसे भाई हम

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Prgya: नमस्कार नमस्कार नमस्कार मैं प्रज्ञा लक्ष्मी बहुत दिनों बाद वापिस लौट आई हूँ एक बार फिर मन तरंग में आप सोच रहे होंगे की कहाँ गायब हो गयी थी। खैर उसकी कहानी कभी बाद में बताऊँगी। आज है भाई दूज का दिन सबकी तरह हमारे घर में भी भाइयों के लिए खाना बन रहा है। मिठाइयाँ आ रही है। नारियल के गोले खरीद के लाए गए है। आरोप फिर मैंने सोचा की यार मुझे तो यही नहीं पता की ये भाई दूज का त्यौहार मनाते क्यूँ है। होली तो हम जानते है होलिका अपनी गोद में प्रहलाद को लेकर बैठ गयी थी और उसके बाद स्वयं ही जल गई जिसे होलिका दहन कहते हैं तो ये भी एक भाई बहन का किस्सा है। दिवाली की कहानी भी हम सब जानते है | पर भाई दूज के पीछे की कहानी क्या है ये मेरे ख्याल से कभी लोगों को पता होगा। फिर मैंने सोचा की चलो पापा ऐसी पूछ के देखते है। क्या पता शायद वही जानते हो पापा पापा जरा इधर आना। 

Arun: अरे क्या हुआ 

Prgya: पापा क्या आपको पता है की हम भाई दूज क्यूँ मनाते है। 

Arun: अरे भाई दूज भैया दूज भी कहते है बहुत सारे लोग 

Prgya: हाँ 

Arun: जी। देखो भाई बहन का एक त्यौहार भैया दूज और एक त्यौहार रक्षा बंधन तो रक्षा बंधन की बात जानती हो क्या?

Prgya: हाँ 

Arun: हाँ कोई कहानी है इसके पीछे 

Prgya: रक्षाबंधन के पीछे तो कई कहानियाँ है। एक बहुत प्रसिद्ध कहानी तो ये है की कृष्ण जी की जब ऊँगली कटी थी। तो द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा बांध के उनको दिया था और ये जो टुकड़ा है इसको रक्षा सूत्र के रूप में हम जानते हैं। ऐसे ही एक यम 

Arun: फिर वो जब द्रौपदी जी ने कृष्ण जी को राया वो अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर एक टुकड़ा दिया होगा और फिर। कृष्ण ने शायद कोई वचन दिया होगा। जैसे अब रक्षाबंधन पर भाई बहन की रक्षा का वचन देता है। 

Prgya: हाँ, कृष्ण ने कहा था की तुमने आज मेरी ऊँगली बचाई है और अगर तुम संकट में पड़ोगी तो मैं तुम्हारी रक्षा करने का वादा देता हूँ। 

Arun: ऐसी और भी कोई कहानी होगी जो नए ज़माने की भाई बहन को लेकर के मशहूर रक्षाबंधन की एक कहानी शायद हुमायू की है। राजा जो बादशाह था हुमायूं और जब मेवाड़ की जो राजधानी की रानी थी कर्णावती का नाम सुना होगा। 

Prgya: सुना तो है 

Arun: फिर वो बहादुर साह जफर का मामला था। वो वहाँ ऐसी आक्रमण करने वाले थे। तब महारानी कर्णावती ने हुमायूं को राखी भेजी की भाई आओ और रक्षा करो और देखो हुमायूं ने कर्णावती की रक्षा की। वो अपनी सेना लेके पहुँच गए तो ये भी एक किस्सा है। इसमें न कहीं जाती है, न मजहब है। बस रक्षा का सूत्र है। भाई बहन का प्रेम है तो ये मुँह बोले भाई की कहानी है। ऐसी ही कहानी शायद कोई भैया दूज की होगी। हो सकता है। लेकिन भैया जोशी कहानी बड़ी अनुपम कहानी सच पूछे तो ये इंसानों की कहानी नहीं है इसमें इंसानों के किस्से नहीं है। भक्त प्रह्लाद एक इंसान थे होलिका एक इंसान थी और। हाँ कृष्ण जरा तो वही देव थे द्रौपदी इंसान थी, हुमायूं हुमायू भी इंसान थे। लेकिन ये जो भैया दूज का किस्सा है ये जरा बहुत खास किस्सा है। 

Prgya: कैसे हो?

Arun: भैया दूज पहले तो ये बताओ मनाया कब जाता है मालूम है नहीं भैया दूज जो है जब कार्तिक का महीना आता है और कार्तिक में दीपावली आती है दीपावली के बाद जो द्वितीय तिथि आती है उसे यम द्वितीया कहते हैं तो यम द्वितीय की तिथि को भैया दूज मनाया जाता है। क्यों मनाया जाता है 

Prgya: क्यों मनाया जाता है 

Arun: ये कहानी है यम और यमी की। यम 

Prgya: यमी कौन है 

Arun: यम जानती हो कौन है 

Prgya: यमदूत यमराज

Arun: यमराज यम और यम और यमी की कहानी है तो भाई यम और यमी की कहानी में यम हुए सूर्य के पुत्र और यमी हुई सूर्य की पुत्री तो ये यम और यमी के दोनों भाई बहन का किस्सा है। क्या किस्सा है?

Arun: हुआ यूँ की आह। सूर्य पिता एक बार क्रोधित हो गयी के ऊपर क्यों क्रोधित हो गए और वो किस्सा है उस लम्बे किस्से में नहीं पढ़ते लेकिन वो क्रोधित हो गए और माँ संज्ञा और छाया दो पत्नियाँ थी सूर्य की आप जानते है तो जब वो गुस्सा हो गए और गुस्सा हो कर के फिर वो शप मिल गया। माँ संज्ञा ने श्राप दे दिया। और श्राप दिया तो ये की जाओगे पृथ्वीलोक पे जाओ। और वो साप नहीं था, पूछे तो धरती के लिए तो वो वो एक तरह से आह वरदान था जब यम धरती पर आए तो धर्म का राज हुआ और धर्म का राज हुआ लेकिन वो वहीं रह गए और लंबा समय बीत गया उसमें और यमुना सूर्य की जो पुत्री थी बड़ी बेटी। वो प्रतीक्षा करती रहेगी यम कब आएंगे, यम कब आएंगे, कब शपसाशाप से मुक्त होंगे, कब आएंगे, कब आएंगे और वो वह अपने भाई के विरह में अपने भाई के को लेकर बहुत परेशान बहुत दुखी रहती थी। अब लेकिन यम तक संदेशा कैसे पहुंचे तो पता है ये संदेशा पहुंचाने का काम किसने किया?

Prgya: किसने किया? 

Arun: सूर्य की एक और पुत्री थी 

Prgya: कौन? 

Arun: अरे गंगा 

Prgya: गंगा तो सूर्य की छोटी बेटी हुई 

Arun: न। नहीं नहीं हाँ बिल्कुल सही कह रही हो। गंगा सूर्य की छोटी पुत्री हुई और बड़ी पुत्री हुई यमुना। और आज देखने में लगता है कि गंगा बड़ी बेटी है क्योंकि गंगा तो बहुत बड़ी बड़ी विशाल और यमुना तो यमुनोत्री से निकलती है और देखो कैसे आती है तो बस। गंगा पहुंची वहां। गंगा ने कहा मैं जाके भैया को बताऊँ और गंगा की भी अपनी कहानी है जब वो स्वर्ग से धरती पर उतरी वो एक अलग कहानी है उसकी बात आज नहीं करते लेकिन वो आये और उसने आकर के यमुना को और यम को संदेशा दिया की ऐसे ऐसे बहन यमुना जो है वो विरय में है, तो तुम चलो जाकर के उसका दुःख उस वो तुम्हारे भाई के विरय में वह बेचैन है, परेशान है, तब यम को याद आया और वो भी गंगा ने लताड़ा की तुम आकर धरती पर भूल गए बहन यमुना को तो भाई फिर हुआ यूं। की यम गए और जिस तिथि को वहाँ पहुँचे वो तिथि कौनसी थी कार्तिक मास की यम द्वितीया और उसी को कहते है यम द्वितीया और कुछ दिन बहन यमुना ने अच्छे अच्छे भोजन बनाये। भाई के इंज़ में बहुत तैयारी की। और फिर तो बस यहाँ से वो हो गया त्यौहार शुरू 

Prgya: भाई दूज की इतनी अनोखी कहानी भी हो सकती है मुझे तो पता ही नहीं था। 

Arun: कहानी तो सच मुच बहुत अनोखी है और अनोखी बात ये भी है की बाद में यमुना भी धस्ती पर आई 

Prgya: है। ये कब हुआ?

Arun: बस उसकी भी एक अलग कहानी है उस लंबी कहानी में नहीं जाते लेकिन मेरी चिंता तो इस बात को लेकर है कि हम लोग इतने उत्साह से भाई बहन इतनी तैयारी से आज घर में पकवान बन रहे हैं भैया आएंगे भैया आएंगे और नारियल का गोला देंगी बहन और वो उस तरह से तो ये सब तो जानते हैं करते हैं लेकिन बहन यमुना की हमने जो हालत कर दी है जरा सोचिए की यम क्या सोचते होंगे हमारे बारे में की यम की बहन की हमने क्या हालत कर दी है और हम भैया दूज मनाते है और यमुना जी में यमुना मैया की बस उठाया कूड़ा यमुना भैया अपने नाले यमुना मैया अपनी फैक्ट्री का कचरा यमुना तो भाई ऐसे इस त्यौहार को मनाने का क्या फायदा। जिसमें जहाँ से ये त्यौहार शुरू हुआ हम उसी यमुना की रक्षा नहीं कर पा रहे और यमुना की रक्षा की बात नहीं है। यमुना के बहाने अपनी ही रक्षा की बात है। यमुना मरेगी तो तिल तिल करके हम भी मरने वाले हैं। तो तकलीफ नहीं होती। बात सुन 

Prgya: सही बात है। मतलब अगर देखा जाए तो हम एक तरीके ऐसी यमुना के किनारे में रह रहे हैं। मैं दिल्ली की रहने वाली हूँ और दिल्ली हम सब जानते है यमुना पे बहुत डिपेंडेंट है। हमारा पानी यमुना ऐसी आता है वो पानी पीने लायक नहीं है। 

Arun: अरे भाई यमुना सिर्फ पानी पिलाने के लिए नहीं है। नदियाँ हमारी माँ है माँ ऐसे ही नहीं कहते किसी को हम नदियों को माँ कहते हैं ना तो ऐसे थोड़ी कहते है नदियाँ बहती नदियाँ सिर्फ पानी नहीं होती उनके साथ रेत बहता है, गाद बहती है उनमें जीवन होता है, मछलियाँ होती है, वनस्पति होती है। तरंगे होती है, उनका तल होता है, तलछट होता है, वनस्पतियाँ होती है नदियाँ तो प्राण होती है और पता है यमुना की कहानी सिर्फ यम और यमी की कहानी नहीं है वो यमुना सिर्फ यमराज को ही प्रिय नहीं थी और और किसी को भी प्रिय थी जिसके हम गान गाते नहीं थकते। किसकी गान गाते नहीं थकते रोज जाते है दिल्ली ऐसी गाड़ी उठाते है पहुँच जाते हैं बोलो गुरराज जी महाराज की जय बोलो राधा रानी की जय बोलो कृष्ण कन्हैया की जय सुनी है कृष्ण की कहानी कालिया नागवाली 

Prgya: हाँ पर अच्छे से नहीं पता अगर आप उसपे थोड़ा प्रकाश डाले 

Arun: अरे भाई कृष्ण बचपन में सुना होगा। बहुत सारे चित्र भी देखे होंगे जब कृष्ण नदी के नदी में एक बहुत बड़ा कालिया देह उसका नाम था। कालिया नाग कहते थे वो नदी में आया नदी को विश्व से भर दिया और फिर कृष्ण वहाँ आए और पूरे लोग जब परेशान हो गए, कोई बेहोश हो गया, कोई गिर गया, कोई मर गया तो कृष्ण वहाँ आये और कालिया नाग के फन पर खड़े होकर बासरी बजाने लगे और उसके फन को मत के कुचल के कुचलने लगे। वो एक कहानी है वो कहानी दरअसल कालिया दे और कुछ नहीं है वो प्रदूषण है आज का जो नदी को जहरीला कर रहा है। कल्पना करो की ये जो प्रदूषण है ये कालिया देय है। और कल्पना करो की कोई हम लोगों में से कोई बालकृष्ण होगा। और वो कृष्ण उस प्रदूषण को संपन्न करेगा। उस प्रदूषण को संपन्न नहीं करेगा और प्रदूषण को धीरे धीरे खत्म करेगा। तो आज बालकृष्ण की जरूरत है जो मुदली बनाये और कालिया दे के फन पर खड़ा होकर उसको मते और उसको नष्ट कर दे। 

Prgya: और ये बालकृष्ण बनेगा कौन?

Arun: ये तो भाई बड़ा यक्ष प्रश्न है बनना तो। हमको ही होगा। और बताएं जब कृष्ण पैदा हुए तब की कहानी मालूम है जब वासुदेव और देवकी लेके चले उनको और गए जब यमुना जी यमुना बढ़ गयी कहानी है ना जब वो गए और अपने सिर पर रख कर सूप में लेकर के तो यमुना बढ़ गयी और यमुना बढ़ती गयी बढ़ती गई जैसे ही कृष्ण का पेट हुआ तैसे ही नीचे उतर गई। ये भी एक किस्सा है बहियन बाँधे नंद नंदन को कालिंदी कट लपटए रही धन भाग हो यमुना जी के प प रही मुस्काए रही तो यमुना कृष्ण की कृष्णा थी कृष्ण की कृष्णा है मैं कहूँ तो कृष्ण क्या सोचते होंगे की अरे दिल्ली वालों आगरा वालों देहरादून वालों खरसाली वालो सोनीपत पानीपत, यमुनानगर वालों। और भैया प्रयागराज वालों। हम्म तुमने मेरी कृष्णा का क्या हाल कर दिया यम कहता होगा। अच्छा मेरी बहन का ये हाल कर दिया तो यम क्या हमें छोड़ेगा। हमें भी उसी तरह तिल तिल करके मरना होगा जैसे यमुना को हम मर रहे हैं। अभी दो चार दिन पहले की तो बात है पूरी यमुना झागों ऐसी पटी पड़ी थी। बड़ी चर्चाएं हुई किया क्या हमने ऊपर ऐसी कुछ छिड़क देने ऐसी उसका नहीं प्रदूषण नहीं खत्म होगा। प्रदूषण कैसे खत्म होगा 

Prgya: कैसे खत्म 

Arun: होगा बस नदी में प्रवाह बढ़ा दो 

Prgya: और ये प्रवाह कैसे बढ़ाएंगे। 

Arun: उसके तो बहुत सारे तरीके है। नदी में जो यमुनोत्री से जल चलता है उसे जरा प्रयागराज तक जाने दो। इधर पश्चिमी यमुना नहर उधर पूर्वी यमुना नहर सब खींच लेती है तो बस जरा थोड़ा नदी के लिए भी छोड़ दो, नदी के भी तो अपने हक होते हैं, मां यमुना के भी तो अपने हक हैं वो हमें जीवन देती है। हमें प्राण वायु देती है एक तरह से यदि नदियां जहर हो गई तो आसमान मीथेन जैसी गैसों से भर जाएगा नदी का जल और वायु ऐसे थोड़ी कहते हैं यदि जल प्रदूषित होगा तो वायु स्वच्छ नहीं रहने वाली और वायु प्रदूषित होगी तो जल स्वच्छ नहीं रहने वाला एक गहरा रिश्ता है तो भाई आज की कहानी तो यमुना की कहानी हुई अब बात ये है कि भैया दूज का त्यौहार तो मनाए लेकिन यमुना यमुना की चिंता ना करें तो ऐसे त्यौहार मनाना जरा छूठापन है ढोंग है और ये कहें कि हम उत्सव तो मनाते हैं नदी किनारे घंटे भी  बजाते हैं। आरती भी करते है, पूजा भी करते हैं लेकिन इसकी परवाह नहीं करते की उसमें प्राण वायु बचे है और ऐसे ही हम अपने जीवन में कर रहे हैं। माँ बीमार होती है तो क्या करते हैं। बूढ़ी हो गयी, बीमार हो गयी, लाचार हो गयी तो क्या करते हैं बाहर बिठा देते हैं बाहर के कमरे में दाल देते हैं एक छ प उसके लिए जब तक माँ में प्राण थे तब तक तो हमने जब तक छोटा शिशु होता है तो माँ का स्तन का दूध पीता है पोषण पाता है, माँ सेवा करती है जब माँ की सेवा का मौका आता है तब हम क्या करते हैं? क्या करते हैं, क्या कर रहे हैं। 

Prgya: हम उनको वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं, उन्हें बाहर बिठा देते है। 

Arun: तो बस यही हम यमुना के साथ कर रहे हैं। लगता है की यमुना हमें पानी नहीं देगी तो चलो दिल्ली वालों गंगा ऐसी पानी ले लेंगे। कहीं किसी और तो हम तो parasite हैं। परजीवी है हम तो पानी के परजीवी दिल्ली वाले कहीं गंगा से ले लेंगे कहीं हिमाचल से पानी ले लेंगे अरे अपने शहर में यमुना बहती हैं यमुना को समृद्ध करो अगल बगल झील तालाब कुएं जो कुछ है [00:14:00] उनको ठीक करो उनमें पानी भरेगा बरखा का पानी धरती के पेट में उतरेगा नदी अपने आप बहने लगेगी। और नदी खूब बहेगी और अपने आप ही अपने आप को स्वच्छ भी करने लगेगी। तो एक तरफ तो हमें फैक्ट्रियों का प्रदूषण रोकना है। उसको ट्रीट करके निकालना है। अपने नालों के अपने जो हमारे सीवेज के म्यूनिसिपालिटी के नाले है उनको ठीक रखना है और दूसरी तरफ हमें नदी का प्रभाव बढ़ाना है। उसमें हरियाली बढ़ानी है। 

Prgya: अच्छा पापा एक बात बताइए अभी हम इंडिविडुअल लेवल पे क्या कर सकते है। यमुना की स्थिति को और बेहतर करने के लिए 

Arun: बहुत आसान है जितना ज्यादा उपभोग उतना ज्यादा कचरा तो पहले हम कचरा कम करे अपनी जिंदगी से और ये जिंदगी ऐसी कम होगा तब जब हमारे दिमाग का कचरा क्योंकि दुनिया में जो कुछ भी घटता है वो सबसे पहले किसी इंसान के दिमाग में घट चूका होता है तो यदि हम ये तय कर ले की हम मान ली पॉली कचरे की बात करें हम तय कर ले की चलो भाई। हम ये पन्नियों का बाजार जरा सा कम करेंगे और कम से कम जहाँ बहुत जरूरी हुआ वही पॉलीथीन उसे करेंगे या राइकलिंग वाला जो पॉलीथीन है आह उसको बाजार से सब्जी लाने जाना हो या दूध लाने जाना हो अपने घर से एक पन्नी यदि हम ले जाए रोज। एक ही पन्नी ले जाए हाँ हाँ मान लीजिए कुछ चीज़ें कपड़े के थैले में नहीं आती है यदि मान लीजिये आप दूध लेते हैं पैक का वो गीला होता है ठंडा होता है तो एक पन्ने अपने पास रखे साल में तीन सौ पैंसठ पन्निया ला कर के शहर से या किसी दुकानदार से लाकर घर में कचरा बढ़ाने की क्या जरूरत है तो हम ये यमुना का काम करेंगे यदि हम बोतल बंद पानी बाजार से खरीदने के बजाय अपने घर में से पानी लेके चले। तो कोई धरती के धरती से बहुत ज्यादा पानी निकालने वाली जो इंडस्ट्रीज है वो धीरे धीरे कम होती जाएंगी। गर्मियों में यदि हम प्याऊ लगा दें घर के बाहर एक छोटा सा मटका रख दें तो लोग बॉटल्ड वाटर खरीदने की मजबूरी नहीं होगी कि निकले हैं प्यास लगी है चल एक बोतल दे दे भैया तो उससे हमारा काम होगा ऐसे बहुत सारे कारण हो सकते हैं बहुत सारे तरीके हो सकते हैं हम अभी जो ऑनलाइन बाजार चल रहा है ऑनलाइन बाजार ही समझ लीजिए यही प्रदूषण का बहुत बड़ा खेल है इसके पीछे। जब आप देखेंगे घर में ऑनलाइन ऑर्डर किया एक कोई लेकर आया कॉफी अभी अभी कॉफी लेकर आया ना कोई तो उसमें उसका उसका थैला किस चीज़ का था कागज का तो पॉलीथीन को बचाने के लिए तो हम कागज लेकर आए लेकिन कागज कागज तो पेड़ों से बनता है और तमाम चीजों से वनस्पतियों से बनता है तो हम पेड़ काट रहे हैं उसके लिए तो ये सब बहुत समझदारी से करने की जरूरत है लेकिन आज तो मामला है भैया दूज का तो चलो वापस लौटते है भैया दूज की तरफ और अब ये बताओ की अभी शाम को जब भाई आएंगे और तुम भैया दूज मनाओगे तो भैया से क्या कोई ऐसा प्रण ले सकती हो जिससे यमुना को फायदा हो। तो देखो भाई अब हम वापस लौटते हैं इस कार्यक्रम को वापस समेटते हैं और आज जब भाई भाईदूज है और शाम होने वाली है जब हम इस प्रोग्राम को रिकॉर्ड कर रहे हैं और जब भाई आएँगे और तुम उन्हें। भोजन तो कराओगे लेकिन भाई और बहन का कुछ लेना देना भी होता है ना आज के दिन तो फिर आज भाई से क्या मांगोगी या कोई ऐसा कुछ मांग सकोगी क्या जिससे यमुना जी यमुना बहन यम की सूर्य की पुत्री को और हम सबकी माँ यमुना को कृष्ण की कृष्णा यमुना को जीवन में उसकी सेहत में उसकी समृद्धि में कुछ योगदान होगा उस वचन से। 

Prgya: देखिए मैं बस उनसे यही कहूँगी की न मुझे आज कोई पैसे चाहिए न कोई गिफ्ट चाहिए। मुझे तो बस एक वादा चाहिए हमारी यमुना के लिए और यमुना के बहाने ऐसी हमारी पीढ़ी के लिए 

Arun: ये बहुत अच्छी बात कही है। सच बात तो ये है की यमुना यदि समृद्ध होगी तो हम यमुना की रक्षा नहीं करेंगे। यमुना यदि प्रवाह बढ़ेगा निर्मल होगी तो हम यमुना की रक्षा नहीं करेंगे। यमुना के बहाने अपनी रक्षा करेंगे। हम बीमार होकर तिल तिल करके हमारी पीढ़ी नहीं मरेगी। ये यमुना की बात नहीं है एक पूरी पीढ़ी और पूरे आसपास के परिवेश को जीवन और समृद्ध करने की बात है तो ऐसे में कोई वादा क्या वादा लोगी?

Prgya: जी सबसे पहले तो मैं कहूँगी की मुझे आज के बाद कोई भी चीज़ प्लास्टिक मिला के मत दीजियेगा और दूसरी की अगर बाहर जाए तो बीस रुपए की बॉटल खरीदने की बजाय अपनी पानी की बॉटल साथ में लेके जाए। 

Arun: देखो ये तो ज़रा मुश्किल वादा है की कोई प्लास्टिक में कुछ नहीं ला के देखा ये कह सकते है की जो ओंस उसे वाला पॉली बैग है वो उसमें कुछ लेके नहीं आएंगे लेकिन पूरा का पूरा ऑनलाइन बाजार तो आजकल। इसी खेल पर चल रहा है जो कुछ आ रहा है पॉली पैक है या फिर कागज़ में पैक है तो कागज पैक है तो पेड़ कटेंगे और पॉलीपेक है तो कचरा बनेगा उसकी कहीं रिसाइकिलिंग होगी कहीं नहीं होगी क्योंकि हम भी तो यही करते हैं ना कि घर में जब हम डस्टबिन में कूड़ा डालते हैं, रसोई का कूड़ा उसमें मतलब हरा हरा कूड़ा भी उसी उसी में और उसमें प्लास्टिक बीसी में और कील  बीसी में और कागज़ बीसी में तो वो रिसाइकिल भी नहीं हो पाता। तो पहला एक पादा तो हमें खुद से करना पड़ेगा आज के दिन वो ये कि हम हरे कचरे को अलग और बाकी कचरे को जो रिसाइकिल हो सकता है उसको अलग। में रखे और उसी तरह से हमारी जो गाड़ी आती है ना कूड़ा उठाने वाली देखा होगा उसमें भी अलग खाने बने रहते हैं हर एक के लिए अलग, हर एक जगह नीला होता है शायद लिखा होता है तो उसके लिए अलग तो ये भी एक फायदा हमको करना होगा तो फिर इस वायदे के साथ भाई दूज का पर्व मनेगा तो भाई यमुना भी खुश होंगी भैया भी स्वस्थ होंगे और बहना भी स्वस्थ होंगी। तो भाई सच्ची बात तो ये है क्या है सच्ची बात क्या 

Prgya: है 

Arun: यमुना जी आई जियो गिरी दीदी क्या बोलो। 

Prgya: यमुना जी आये गिरी 

Arun: जियो गिरी दीदी यमुना जी आये जियो गिरी दीदी बोलो बोलो यमुना जी आये जियो गिरी दीदी यमुना मरी तो मर जाओगे भैया यमुना मरी तो मर जाओगे भैया। कैसे हो कृष्ण भगत यो कन्हैया कैसे हो कृष्ण भगत मेरे भैया है रे भैया दया रे दया है रे है दया रे दया तो भाई यमुना मैया की जय भाई बहन की जय जय यम यमी की जय और उनकी जय के लिए हम अपने जीवन में कुछ अच्छा करे। कुछ सुन्दर छोटे कदम उठाए जो कर सकते हैं वो करे। आज का एपिसोड इसी के साथ तो फिर प्रज्ञ लक्ष्मी तुम्हारी वापसी बहुत अच्छी हुई है इसको आगे। तो भाई क्या कहूँ मैं हाँ मैं ये कहने वाला था की बहुत दिनों बाद लेकिन अच्छी आपसी की है प्रज्ञ लक्ष्मी तुमने मन तरंग में और तुम अपने श्रोताओं से भी एक वादा करके जाओ। 

Prgya: जी जी तो श्रोताओं आज मैं आपसे वादा करती हूँ की जैसे हम आज आये हैं वैसे ही आते रहेंगे बार बार। और भी बढ़िया बढ़िया एपिसोड के साथ धन्यवाद और सुनते रहिये मंत्र।

One thought on “भैया दूज : यमुना के कैसे भाई हम”
  1. I must say, I did’t know these historical facts about these novel tags in our social fabrics. An extremly useful podcast, one should listen to and to pass on.
    Great work by Bhai Arun Jee and Pragya Beti.
    Dr Manoj
    London

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