पर्यावरण दिवस – 2023 : जो नहीं रहे, उनके नाम

निवेदक: पानी पोस्ट टीम

13 जून, 2011 से 04 जून, 2023 – मात्र 12 वर्ष के इस छोटे से इस अंतराल में हमने खासकर नदी-पानी की चिंता के ज़रिए इंसानी सभ्यता को संरक्षित करने की कोशिश करने वाली कई शख्सियतों को खो दिया। पर्यावरण दिवस – 2023 उन्ही की स्मृति और संकल्प के नाम।

13 जून, 2011 – सन्यासी श्री निगमानंद

13 जून, 2011 से 04 जून, 2023 - मात्र 12 वर्ष के इस छोटे से इस अंतराल में हमने खासकर नदी-पानी की चिंता के ज़रिए इंसानी सभ्यता को संरक्षित करने की अपनी कोशिश रहने वाली कई शख्सियतों को खो दिया। पर्यावरण दिवस - 2023 उन्ही की स्मृति और संकल्प के नाम

मातृ सदन, हरिद्वार ने गंगा में हो रहे अवैध चुगान व खनन को रोकने की मांग की। मातृ सदन के ही 34 वर्षीय सन्यासी श्री निगमानंद ने मांग की पूर्ति के लिए तप का मार्ग चुना। 53 दिन बाद अनशन को जबरन तुड़वा दिया गया। पुनः बैठे तो अगले 62 दिन अनशन के बाद हमने एक गंगापुत्र को खो दिया। मातृ सदन ने षडयंत्र के आरोप लगाए; सीबीआई जांच की मांग की; लेकिन हमें कोई फर्क नहीं पड़ा। समाज के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।

11 जुलाई, 2014 – बाबा श्री नागनाथ योगेश्वर

काशी महाश्मशान पीठ के पीठाधिश्वर बाबा नागनाथ योगेश्वर – गंगोत्री से गंगासागर तक अविरल-निर्मल गंगा की अपनी मांग को लेकर 19 जुलाई, 2008 में उपवास का व्रत धारण किया। 1000 दिन पूरे होने पर मध्य प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रामनरेश यादव के हाथों वह अनशन सम्पन्न हुआ। पुनः उपवास शुरू किया तो उन्हे हालत बिगड़ने पर जबरन अस्पताल में भर्ती करा दिया गया। 2014 में वाराणसी के सर सुन्दरलाल अस्पताल में उसका समापन हुआ। इतने वर्ष लम्बे उनके गंगा उपवास के दौरान सुश्री उमा भारती, योगगुरू बाबा रामदेव, नामी कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे जैसे करीबियों का साथ तो ज़रूर मिला, लेकिन गंगा का व्यापक समाज उनके साथ नहीं दिखाई दिया। ज्यादातर लोग, बाबा नागनाथ को आज भी नहीं जानते। हमने एक और गंगापुत्र खो दिया।


11 अक्तूबर, 2018 – स्वामी श्री ज्ञानस्वरूप सानंद

आई आई टी, कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख, औपचारिक तौर पर प्रशिक्षित भारत के प्रथम पर्यावरणविद्, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, भारत सरकार के प्रथम सचिव – ऐसी कई प्रमुख पहल के लिए प्रसिद्ध रही इस शख्सियत को माता-पिता द्वारा दिया नाम गुरुदास अग्रवाल था। वह कभी खुद बांध निर्माण परियोजना में शामिल इंजीनियर थे। किन्तु नफा-नुकसान और गंगा के अध्यात्मिक पक्ष को समझते ही वह नदी के प्रवाह पर निर्माण संबंधी परियोजनाओं के डिजाइन और संचालन के तौर-तरीकों के सख्त खिलाफ हो गए।

प्रो. गुरूदास अग्रवाल के रूप में उन्होने अपना पहला गंगा अनशन वर्ष – 2008 में किया गया। मांग थी कि उत्तराकाशी के ऊपर भागीरथी पर मंजूर तीनो विद्युत परियोजनाओं को रद्द किया जाए। परियोजनायें थीं: भैरो घाटी, लोहारी-नागपाला और पाला-मनेरी विद्युत परियोजना।

इसके बाद उन्होने कई अनशन किए। उन्हें साथियों का अच्छा समर्थन मिला। इसी प्रक्रिया में वह ज्योतिष्पीठ के सन्यासी बने। उन्हे नया नाम मिला : स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद। केन्द्र व संबंधित राज्य सरकार भी थोड़ी हिली-डुली। अंतिम अनशन, घोषित तौर पर स्वामी सानंद का आमरण अनशन था। 22 जून, 2018 को शुरू किया। अंतिम अनशन की चार मांगें थी :

1. सरकार, गंगा महासभा द्वारा वर्ष 2012 में तैयार बिल प्रारूप को संसद में बहस के लिए पेश करे और पास कराये। यदि बिल पास नहीं होता है तो इसके प्रथम अध्याय की 01 से लेकर 09 तक बिंदुवार धाराओं को अध्यादेश लाकर लागू करे।
2. अलकनंदा, धौलीगंगा, नंदाकिनी, पिंडर, मंदाकिनी तथा भागीरथी पर जारी निर्माण रोके तथा प्रस्तावित भावी विद्युत परियोजनाओं को रद्द करे।
3. वन कटान, पशु कटान तथा सभी प्रकार के खनन को विशेषकर हरिद्वार कुभ क्षेत्र में पूरी तरह रोक दी जाए।
4. गंगा भक्त परिषद का गठन हो। अस्थाई तौर इसे प्रधानमंत्री द्वारा नामित ऐसे 20 लोगों की सदस्यता के साथ गठित किया जाए, जो कि
 सिर्फ नदी के हित में कार्य करने की शपथ लें।

इन चार मांगों की पूर्ति के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को कई पत्र लिखे। एक का भी जवाब नहीं मिला, तो 09 अक्तूबर को जल भी त्याग दिया। प्रशासन ने उन्हे एम्स, ऋषिकेश में जबरन भर्ती करा दिया। अंततः 112 दिन के अनशन के बाद 11 अक्तूबर, 2018 को हमने उन्हे भी खो दिया। मातृ सदन ने स्वामी सानंद की मृत्यु में भी षडयंत्र पर सवाल उठाये; लेकिन कुछ नहीं हुआ। हमने एक और असली गंगापुत्र खो दिया। गंगा हितैषी उक्त चार मांगें आज तक नहीं मानी गई। गंगा समाज आज भी चुप ही है।

सन्यासी श्री आत्मबोधानन्द, संत श्री गोपालदास, साघ्वी सुश्री पद्मावती: मातृ सदन के प्रमुख स्वामी श्री शिवानंद सरस्वती जी के निर्देश पर गंगा के लिए इन असल गंगापुत्र व गंगा पुत्री ने भी अपने प्राणों की बाजी लगाई। सरकार व प्रशासन ने सिर्फ आश्वासन दिए। संवेदनहीनता दिखाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। वह जीवित हैं। संभवतः अभी इन सभी का गंगा कार्य अभी शेष है।

09 सितम्बर, 2015 – श्री रामास्वामी अय्यर

भारत सरकार के जल संसाधन सचिव के पद पर रहते हुए 1987 में प्रथम राष्ट्रीय जल नीति की पहल और सरदार सरोवर बांध परियोजना की मंजूरी के लिए हमारी उनसे मत भिन्नता संभव है। किन्तु सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अवैतनिक प्रोफेसर के तौर पर श्री अय्यर ने जिस तरह नदी और पानी संरक्षण के मज़बूत पैरोकारी की; सरदार सरोवर बांध के दुष्प्रभाव को समझते ही खिलाफ रिपोर्ट दी, समझ में आ गया कि वह सरकार नहीं, पर्यावरण के साथ खड़े हैं।

उन्होने लिखा – ’’सरदार सरोवर बांध एक चिरस्थायी मूर्खता है।’’

उन्होने आगे चलकर यह भी कहा कि हमें समझना होगा कि नदियां पानी से अधिक कुछ हैं। नदियां हमारे सामाजिक, ऐतिहासिक व सांस्कृतिक ताने-बाने का ऐसा हिस्सा हैं, जिन्हे इस ताने-बाने से अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए।

1996 में टिहरी बांध की समीक्षा की ज़िम्मेदारी मिलने के बाद वह बडे़ बांधों के अधिक प्रबल आलोचक हो गए। वह सार्वजनिक संपत्ति को सामाजिक न्याय की तराजू पर तौलकर देखने वाले नीति विशेषज्ञ के तौर लगातार दृढ होते चले गए। उन्होने कई पुस्तकें लिखीं और संपादित कीं। उनकी प्रेरणा से ही भारत नदी सप्ताह की शुरूआत हुई। सिक्किम की तीस्ता जल विद्युत परियोजनाओं की मंजूरी पर तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्री पीयूष गोयल ने अपनी पीठ ठोकी तो श्री अय्यर उन्हे आइना दिखाने से नहीं चूके। अततः 2015 में उनकी लम्बी सुन्दर देह का अंत हो गया। उनकी व्यावहारिक सहजता, बाल सुलभ मुस्कान और वैचारिक दृढता से अब कभी मुलाकात न होगी।

०९ मई, २०१६ – श्री अरुण कुमार

पानी बाबा के उपनाम से मशहूर श्री अरुण कुमार के अनुभवों की थाती को संजोकर रखना भी इस पर्यावरण दिवस का ही काम है। पानी के लिए मार्च, पुस्तक – भारतीय जलधर्म का लेखन और जोधपुर में मरुस्थल विज्ञानं भारती की स्थापना के लिए अरुण जी याद किया ही जाना चाहिए।

19 दिसम्बर, 2016 – श्री अनुपम मिश्र

अनुपम जी के बारे में कोई कलम क्या लिखेगी; उनके परिचय का पट पहले ही काफी अनुपम रहा है ।

आज भी खरे हैं तालाब और राजस्थान की रजत बूंदे – इन दो पुस्तकों को लिखकर पानी की दुनिया में ख्याति पाने वाली शख्सियत थे अनुपम जी। उन्होने कई अन्य किताबें व लेख रचे। भाषा, व्यवहार व निजी जीवन शैली में सादगी अनुपम जी की शक्ति थी। अनुपम जी की प्रेरणा, सीख व समझ ने कई को पानी के काम में लगाया। यह पर्यावरणीय विरोधाभास भी है और ताज्जुब का विषय भी कि ऐसी सादगी भरी अनुपम देह को प्रोटेस्ट कैंसर ने अपना शिकार बनाया। आज पलटकर देखते हैं तो लगता है कि वर्ष – 2016 में हमने उन्हे ही नहीं खोया, परम्परागत् पानी प्रबंधन के प्रबल पैरोकारी अध्याय को ही खो दिया।


12 मई, 2021 – श्री प्रशांत वत्स
 

गाज़ियाबाद में एक छोटी सी दुकान चलाने वाले प्रशांत में पर्यावरण को लेकर ऐसा जुनून जागा कि दुकान बंद कर पर्यावरण जगाने में लग गए। गलत लगे तो तुरन्त टोक देना; अच्छा लगे तो शाबाशी देने में कोई कंजूसी न करना। कभी बेलाग, कभी चंचल से लगने वाले प्रशांत को सबसे ज्यादा दुखी किया, हिंडन नदी की दुर्दशा ने। हरनन्दी, हिंडन का पुराना नाम है। प्रशांत ने ’हरनंदी कहिन’ नाम से पत्रिका निकाली। पैसे की कमी थी। वह हमेशा इसके लिए चिंतित रहते थे। गुजारे के लिए बीमा एजेन्ट भी बने। इनकम टैक्स वाले भी मीनमेख निकालकर परेशान करते रहे। लेकिन वह डटे रहे। समय व साथियों से सीखते रहे। पत्रिका निकालते रहे। फिर माइक उठा लिया। ‘हरनंदी कहिन’ – यू टयूब चैनल शुरू कर दिया। इस माध्यम ने प्रशांत को मांजना शुरू किया। वह निखरते गए। एक अच्छे रिपोर्टर व पर्यावरण के जिज्ञासु जानकार की तरह पेश आने लगे। इस बीच कोरोना का विषाणु फैला और भाई प्रशांत को हमारे बीच से उठा ले गया।

बिना बड़ा नाम, बड़ा पद व बिना पदक वाले ऐसे जुनूनी फक्कड़ों के चले जाने के बाद उनके संकटग्रस्त परिवारों को अक्सर हम नहीं पूछते। प्रशांत के परिवार की चिंता भी हमने नहीं की। हम ऐसे ही हैं।

15 अगस्त, 2022 – श्री विमल भाई

कैसा रोमांचकारी दृश्य था! एक ओर देश आज़ादी का उत्सव मना रहा था, दूसरी ओर 60 वर्षीय विमल भाई को उनके कामरेड साथी गीत गाकर अलविदा कर रहे थे।


लगता है कि विमल भाई को दिल्ली के कॉलेज की पढ़ाई से ज्यादा, गांधीवादी संगठन सन्निधि की पढ़ाई रास आई। कभी सांप्रदायिक सौहार्द के संवाद में तो कभी फादर थॉमस कोचेरी के साथ और कभी खनन के खिलाफ राजस्थान की मरुभूमि में। यौन अल्पसंख्यकों को अधिकार के लिए लड़े तो आखिरी वक्त में फरीदाबाद के खोरी गांव में पुनर्वास के काम में लगे रहे।


सन्निधि में श्री सुन्दर लाल बहुगुणा जी से हुई मुलाकात ने उन्हे बडे़ बांधों के प्रबल विरोध के उस रास्ते पर मोड़ दिया, जिसके लिए वह और उनका माटू संगठन जाना जाएगा। खासकर विष्णुप्रयाग, पीपलकोटी और श्रीनगर बांध परियोजनाओं को पर्यावरणीय व वन मंत्रालय द्वारा दी मंजूरी को चुनौती देने के लिए उन्होने स्थानीय समाज को जिस तरह आगे रखा; वह एक उदाहरण है।


विमल भाई के निर्भिक स्वभाव, लामबंदी के कौशल व काम में सातत्य ने उन्हे नर्मदा बचाओ आंदोलन का सक्रिय सदस्य तथा कालांतर में जनान्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय का राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में सक्रिय रखा। यह विमल भाई द्वारा किया पुरजोर विरोध व पैरवी ही थी कि राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण अधिनियम आया और पर्यावरणीय न्याय की एक अदालत सभी को सुलभ हुई।
सन्नाटे के समय में एक ऐसे जुझारू शख्सियत का जुदा होना, कम बड़ी क्षति नहीं।

17 नवंबर, 2022 – श्री कृष्ण गोपाल व्यास

श्री व्यास ने जबलपुर विश्वविद्यालय से भू विज्ञान के स्नातकोत्तर तक पढ़ाई की थी। पानी के क्षेत्र में उनकी अपनी ज़मीनी पारी तो राजीव गांधी वाटरशेड मिशन के सलाहकार व जल एवम् भूमि प्रबंधन संस्थान के संचालक के रूप में थी। लेकिन उनकी असल खासियत यह थी कि उन्हे भूजल की प्रबंधन की परम्परागत् और आधुनिक दोनो तक़नीकों की अच्छी व बुनियादी समझ थी। वह अपनी इस समझ को खुले दिल से बांटते थे। तकनीकी को सरल भाषा में परोसते थे। इसके लिए उम्र के आखिरी पड़ाव में भी दूर दराज इलाकों में पैदल विचरने व लम्बी यात्राओं में आलस्य नहीं करते थे। उन्होने मध्य प्रदेश सरकार के लिए ’पानी रोको अभियान; की अवधारणा तैयार की। विरासत तालाबों पर पाठ्यक्रम तैयार किया। संरक्षण की विधा को समझाया। खुद का लिखा भी ‘रिवर मैनुअल’ शासन को सौंपा। कहना चाहिए कि श्री व्यास पानी के अच्छे लेखक के साथ-साथ एक अच्छे शिक्षक भी थे।


वह जीवन के मध्य में हृदयाघात व कैंसर जैसे जानलेवा हमलों से लडे़ और जीते। किन्तु अंत में प्रोस्टेट कैंसर ने श्री व्यास जी की 82 वर्षीय देह कोे हमसे जुदा कर दिया।


06 मार्च, 2023 – बहन श्रीमती मीनाक्षी अरोड़ा

पानी-पर्यावरण के क्षेत्र में हिंदी भाषा में लेखक व कार्यकर्ता तैयार करने हिंदी वाटर पोर्टल का योगदान अहम है। ऐसे पोर्टल की लेखक, संपादक व संचालक के तौर बहन मीनाक्षी अरोड़ा का योगदान अप्रतिम है। भारत में संभवतः वह पहली थीं, जिन्होने नदियों को जीवित प्राणी का दर्जा देने की मांग उठाई। ट्री नामक ट्रस्ट की संस्थापक तथा वाटरकीपर एलायंस नामक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की भारतीय साझेदार के रूप में वह व्यापक सोच रखती थी। मीनाक्षी जी की सबसे बड़ी खूबी उनकी सादगी व सहजता थी। सेहत की खातिर वह दिल्ली छोड़ देहरादून में रहने लगी थीं। किन्तु सेहत ने उनका साथ नहीं दिया। अंततः हमने उन्हे भी खो दिया।


04 जून, 2023 – श्री मनोज मिश्र 

श्री मिश्र को भारतीय वन सेवा के अधिकारी से ज्यादा, ‘यमुना जिये अभियान’ के संस्थापक-संचालक के तौर पर जाना जाता है। राष्ट्रमंडल खेलों के लिए यमुना की ज़मीन पर हॉस्टल बनाने की तैयारी हो चुकी थी। जलपुरूष श्री राजेन्द्र सिंह के नेतृत्व वाली जल बिरादरी ने इसके विरोध में ‘यमुना सत्याग्रह’ शुरू किया। श्री मनोज मिश्र ने भी इसमें सक्रिय सहभाग किया। इसके बाद से श्री मिश्र, यमुना को लेकर समाज व सरकार की समझाइश में जुटे। यात्राएं की।अखबारों में लिखा। अदालत में यमुना की लड़ाई लड़ी। जब श्री श्री रविशंकर के नेतृत्व में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय उत्सव को यमुना की ज़मीन पर करने की बात आई तो बिफर गए। नमभूमि से छेड़छाड़ का आरोप लेकर अदालत में गए और तमाम दबाव के बावजूद डटे रहे। आगे चलकर नदी हितैषी मंथन व प्रोत्साहन को लेकर आयोजित ‘भारत नदी सप्ताह’ की आयोजन समिति के संस्थापकों में से एक होकर सक्रिय रहे। 

कोरोना ने उन्हे निष्क्रिय करने की कोशिश की तो उससे भी लडे़। लड़ते रहे; रचते रहे। इस बीच बीते 50 सालों के अनुभवों पर आधारित एक अत्यंक रोचक व जानकारीप्रद पुस्तक का संपादन किया। शीर्षक है : वाइल्ड लाइफ इंडिया@50.

अभी बीते मार्च तक पानी के 50 साला अनुभवों पर किताब के संपादन में जुटे रहे। जाते-जाते संजो जाने की श्री मनोज मिश्र की यह ललक ही उनकी शक्ति थी। कल 04 जून, 2023 को एक और पानी प्रेरक शक्ति का देहांत हो गया। आज 05 जून को भोपाल में उनका संस्कार कर दिया गया।

पर्यावरण दिवस – 2023 को ऐसी शख्सियतों के नाम करने का उद्देश्य सिर्फ इतना भर है कि जो पर्यावरण के बहाने सम्पूर्ण जीव जगत की चिंता करते हैं, इसके लिए कार्य करते हैं; हम उन्हे अवश्य सम्मान दें; उनसे सीखें और प्रकृति संरक्षण के ऐसे संकल्पों को आगे बढ़ायें।

पानी पोस्ट सम्पर्क : 9868793799

3 thoughts on “पर्यावरण दिवस – 2023 : जो नहीं रहे, उनके नाम”
  1. ऐसे अद्वितीय, अद्भुत महानुभावों को सतत नमन। इनके अपूर्णीय क्षति को कभी पूर्ण नहीं किया जा सकता है। आज विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य पर महान आत्माओं को याद करना हम सबके लिए गर्व का विषय है। इनके उद्देश्य और कार्य को आज भी दुनिया याद कर रही है। जब जब धरती पर जल को समस्या को महसूस किया जायेगा, इस पल को जरूर याद किया जाएगा। अरुण जी को हार्दिक धन्यवाद जिनके माध्यम से ऐसी महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध हो पाई है।

  2. कौन कहता है इन बलिदानियों की जिंदगी खो गई है।
    मैं समझता हूँ
    बूंद समंदर में समाकर अब सागर हो गई है।।
    ऐसी दिव्य महान आत्माओं के असमय गोलोक वासी होने से अचंभित हूँ, ईश्वर दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान देकर सद्गति प्रदान करें।
    ओम शांति शांति शांति🙏

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