कास फुलाने बीते चौमासा

India's Biggest Challenge: The Future of Farming | The India Forum

अरुण तिवारी

गोविंद सोवेे कि गुरुवर जागें,
आस जगावें कि मार्ग दिखावें,
अमरस जमुनी रंग ललचावे,
धरती धारे गर्भ हरित तन,
बदरा साजे बीच आकाशा।
आषाढ़ करे अगवानी जिसकी,
कास फुलाने बीते चौमासा।

आषाढ़ बरसे सावन रिमझिम,
रक्षा बांधे, पींग बढ़ावे,
घटा घनेरी, घनघोर अंधेरी,
बिजुरी तड़के, भादों डरावे,
तीज कान्हा आशा-निवासा।
आषाढ़ करे अगवानी जिसकी,
कास फुलाने बीते चौमासा।

क्वार लहरा आवे जावे
खरीफ पाके, किसान हांसे,
रास न आवे घाम कठिन अति,
संयम चाहे श्राृद्ध नौराता,
सिद्ध करे जो करे उजासा।
आषाढ़ करे अगवानी जिसकी,
कास फुलाने बीते चौमासा।

तृप्त तृण कण पवन पूरबी,
ताल-तलैया भर-भर साजें,
दुलहिन नदिया सागर हरषावे,
रानी महके रात रात भर,
परदेशी मन तबहूं प्यासा।
आषाढ़ करे अगवानी जिसकी,
कास फुलाने बीते चौमासा।

घुघुती दीजो जाय संदेशा,
बेडू़ पाके आषाढ़ मासा,
मन फल लागे बारो मासा,
जब लगी श्वासा, तब लगी आशा,
जोबन मतलब शून्य निराशा।
आषाढ़ करे अगवानी जिसकी,
कास फुलाने बीते चौमासा।

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